सुहागिनों के अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक है वट सावित्री व्रत
अपने सुहाग की रक्षा हेतु पति के दीर्घायु की कामना को लेकर सुहागिनें सत्यवान सावित्री के साथ ही यमराज की करती है पूजा
सीतापुर। वट सावित्री की पूजा मंगलवार को जिलेभर में धूमधाम से मनाई गई। सुहागिनों ने वृत रखते हुए वट वृक्ष की परंपरागत तौर तरीके से पूजा अर्चना करते हुए अपने सुहाग की सलामती की कामना की। महर्षि दधीचि की पावन तपोभूमि कस्बा मिश्रित में आज ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री व्रत की पूजा सुहागिनों द्वारा बड़ी ही धूमधाम से की गई। वट सावित्री वृत सुहागिनों का महापर्व माना जाता है इसदिन सभी सुहागिनें निर्जला व्रत रखकर वट वृक्ष के नीचे सत्यवान सावित्री के साथ ही यमराज की प्रतिमा को स्थापित कर विधि विधान से पूजा करते हुए अपने सुहाग की रक्षा करने हेतु पति के दीर्घायु की कामना करती हैं। मान्यता है सावित्री ने अपने मन अनुकूल सत्यवान के साथ वर का चयन किया था परन्तु बारह वर्ष की आयु पर सत्यवान की मृत्व निश्चित थी जिससे सावित्री के पिता ने दूसरा वर चयन करने की सलाह दी परन्तु सावित्री ने कहा मै आर्य कन्या हूं इस नाते सत्यवान के अलावा किसी अन्य वर का वरण नहीं कर सकती हूं सावित्री ने नारद जी से सत्यवान की मृत्व का समय ज्ञात कर लिया और उनके साथ वरण कर जंगल में रहने लगी । सावित्री ने नारद जी द्वारा बताए गए समय को लेकर तीन दिन पहले ही निर्जला व्रत शुरु कर दिया और निश्चित तिथि को सत्यवान जब जंगल को लकड़ी काटने चले तो सास स्वसुर से आज्ञा लेकर वह भी सत्यवान के साथ चल दी जंगल में लकड़ी काटते समय सत्यवान के सर में भयंकर पीड़ा शुरू हो गई तो सावित्री ने उसे बट बृक्ष के नीचे लिटा सर अपने ऊपर रख लिया कुछ समय परान्त यमराज ने सत्यवान के प्राणों का हरण कर लिया जिससे साबित्री ने अपने पति को वट वृक्ष की छाया मे लिटाकर यमराज का पीछा करना शुरु कर दिया तो यमराज ने उसे वापस लौट जाने हेतु कई बार कहा परन्तु सावित्री ने कहा जहां पति वहीं पत्नी यही हमारा धर्म है और यही हमारी मार्यादा है सावित्री के धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को छोड़कर बरदान मांगने हेतु कहा जिस पर सावित्री ने अपने अंधे सास , स्वसुर की दीर्घायु और आंखो की रोशनी वापस मांग ली यमराज ने तथास्तु कहकर फिर आगे बढ़ने लगे लेकिन सावित्री पीछे - पीछे चलती रही यमराज ने फिर वापस लौट जाने की बात कही तो सावित्री बोली बिना पति के नारी के जीवन की कोई सार्थकता नहीं है यमराज ने पति ब्रत धर्म की करुणा पर दूसरा वरदान मांगने को कहा जिस पर सावित्री ने अपने सास , स्वसुर का राज वापस मांग लिया यमराज तथास्तु कहकर फिर चल दिए परन्तु साबित्री ने पीछा नहीं छोड़ा तो यमराज ने तीसरा वरदान मांगकर लौट जाने की बात कही जिस पर सावित्री ने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा यमराज ने तथास्तु कहकर फिर चल दिए तो सावित्री बोली आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है बिना पति के मैं मां किस प्रकार बन सकती हूं आप अपना तीसरा वरदान भी पूरा कीजिए यमराज ने सावित्री की धर्म , निष्ठा , ज्ञान , विवेक और पति ब्रत धर्म को देखकर सत्यवान के प्राणो को स्वतंत्र कर दिया सावित्री सत्यवान के प्राण वापस लेकर उसी वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर रखा था सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की सत्यवान जीवित हो उठा और आगे चलकर सावित्री सौ पुत्रों की मां बनी तथा चारों दिशाऐं सावित्री के पति ब्रत धर्म से गूंज उठीं आज सभी सुहागिनें सावित्री के पति ब्रत धर्म का अनुसरण करते हुए सुबह से ही निर्जला व्रत रखकर विधि विधान से वट -वृक्ष की पूजा करके अपने सुहाग की रक्षा हेतु पति के दीर्घायु की कामना करती हैं ।
सीतापुर। वट सावित्री की पूजा मंगलवार को जिलेभर में धूमधाम से मनाई गई। सुहागिनों ने वृत रखते हुए वट वृक्ष की परंपरागत तौर तरीके से पूजा अर्चना करते हुए अपने सुहाग की सलामती की कामना की। महर्षि दधीचि की पावन तपोभूमि कस्बा मिश्रित में आज ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री व्रत की पूजा सुहागिनों द्वारा बड़ी ही धूमधाम से की गई। वट सावित्री वृत सुहागिनों का महापर्व माना जाता है इसदिन सभी सुहागिनें निर्जला व्रत रखकर वट वृक्ष के नीचे सत्यवान सावित्री के साथ ही यमराज की प्रतिमा को स्थापित कर विधि विधान से पूजा करते हुए अपने सुहाग की रक्षा करने हेतु पति के दीर्घायु की कामना करती हैं। मान्यता है सावित्री ने अपने मन अनुकूल सत्यवान के साथ वर का चयन किया था परन्तु बारह वर्ष की आयु पर सत्यवान की मृत्व निश्चित थी जिससे सावित्री के पिता ने दूसरा वर चयन करने की सलाह दी परन्तु सावित्री ने कहा मै आर्य कन्या हूं इस नाते सत्यवान के अलावा किसी अन्य वर का वरण नहीं कर सकती हूं सावित्री ने नारद जी से सत्यवान की मृत्व का समय ज्ञात कर लिया और उनके साथ वरण कर जंगल में रहने लगी । सावित्री ने नारद जी द्वारा बताए गए समय को लेकर तीन दिन पहले ही निर्जला व्रत शुरु कर दिया और निश्चित तिथि को सत्यवान जब जंगल को लकड़ी काटने चले तो सास स्वसुर से आज्ञा लेकर वह भी सत्यवान के साथ चल दी जंगल में लकड़ी काटते समय सत्यवान के सर में भयंकर पीड़ा शुरू हो गई तो सावित्री ने उसे बट बृक्ष के नीचे लिटा सर अपने ऊपर रख लिया कुछ समय परान्त यमराज ने सत्यवान के प्राणों का हरण कर लिया जिससे साबित्री ने अपने पति को वट वृक्ष की छाया मे लिटाकर यमराज का पीछा करना शुरु कर दिया तो यमराज ने उसे वापस लौट जाने हेतु कई बार कहा परन्तु सावित्री ने कहा जहां पति वहीं पत्नी यही हमारा धर्म है और यही हमारी मार्यादा है सावित्री के धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को छोड़कर बरदान मांगने हेतु कहा जिस पर सावित्री ने अपने अंधे सास , स्वसुर की दीर्घायु और आंखो की रोशनी वापस मांग ली यमराज ने तथास्तु कहकर फिर आगे बढ़ने लगे लेकिन सावित्री पीछे - पीछे चलती रही यमराज ने फिर वापस लौट जाने की बात कही तो सावित्री बोली बिना पति के नारी के जीवन की कोई सार्थकता नहीं है यमराज ने पति ब्रत धर्म की करुणा पर दूसरा वरदान मांगने को कहा जिस पर सावित्री ने अपने सास , स्वसुर का राज वापस मांग लिया यमराज तथास्तु कहकर फिर चल दिए परन्तु साबित्री ने पीछा नहीं छोड़ा तो यमराज ने तीसरा वरदान मांगकर लौट जाने की बात कही जिस पर सावित्री ने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा यमराज ने तथास्तु कहकर फिर चल दिए तो सावित्री बोली आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है बिना पति के मैं मां किस प्रकार बन सकती हूं आप अपना तीसरा वरदान भी पूरा कीजिए यमराज ने सावित्री की धर्म , निष्ठा , ज्ञान , विवेक और पति ब्रत धर्म को देखकर सत्यवान के प्राणो को स्वतंत्र कर दिया सावित्री सत्यवान के प्राण वापस लेकर उसी वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर रखा था सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की सत्यवान जीवित हो उठा और आगे चलकर सावित्री सौ पुत्रों की मां बनी तथा चारों दिशाऐं सावित्री के पति ब्रत धर्म से गूंज उठीं आज सभी सुहागिनें सावित्री के पति ब्रत धर्म का अनुसरण करते हुए सुबह से ही निर्जला व्रत रखकर विधि विधान से वट -वृक्ष की पूजा करके अपने सुहाग की रक्षा हेतु पति के दीर्घायु की कामना करती हैं ।
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