तो 16 जनवरी को मनाई जाएगी मकर संक्रांति! जानें क्यों...
पूरे देश में आज मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है। इस बार भी 14 और 15 जनवरी को मकर संक्रांति होने को लेकर ज्योतिषीय मतभेद रहे। इस पर्व का आध्यात्मिक महत्व तो है ही, साथ ही इसका संबंध विज्ञान से भी है। क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया कि तिथि के आधार पर पड़ने के बावजूद भी यह पर्व 14-15 जनवरी को ही क्यों पड़ता है? जबकि होली और दीपावली जैसे तिथि आधारित पर्व कभी भी अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से निश्चित तारीख को नहीं पड़ते है
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माघ मेले में कल्पवास कर रहे भौतिकी के अध्यापक जेपी उपाध्याय ने बताया कि हिन्दू कैलेंडर विज्ञान से जुड़ा है क्योंकि इसका आधार ग्रह-नक्षत्रों, सूर्य और चंद्र की अंतरिक्ष में स्थिति है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना सूर्य कैलेंडर के आधार पर होता है। मकर संक्रांति पर दिन और रात लगभग बराबर होते हैं और इसके बाद ही दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है। एक और कल्पवासी लालता प्रसाद कहते हैं कि यह बसंत के आगमन यानी कि फसलों की कटाई और पेड़-पौधों के पल्लवित होने की शुरुआत का सूचक है, इसलिए देश के अलग-अलग राज्यों में इसे कई नामों से मनाया जाता है।
साल 2012 से मकर संक्रांति 15 जनवरी को भी मनाई जाने लगी है। इसके पीछे की वजह भी सूर्य आधारित कैलेंडर से जुड़ी है। सूर्य कैलेंडर का चक्र आठ वर्ष का होता है और हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का समय बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष भी 14 जनवरी को मध्याह्न के बाद सूर्य ने मकर राशि में प्रवेश किया और संक्रांति लगी। इसपर आधारित एक गणना के हिसाब से आने वाले कुछ वर्षों में यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा और फिर 16 जनवरी को।
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