भू वैज्ञानिको के हाथ लगा महत्वपूर्ण फोटो स्कैनिंग डाटा
इलाहाबाद : विलुप्त हो रही जलधाराओ की खोज के लिए वैज्ञानिको की टीम छठवे दिन भी फनगांव मे भूजल तथ्यो को खंगालने मे जुटी रही। कौशांबी के सराय अकिल के समीप दो अलग-अलग उड़ाने भरकर 180 लाइन किलोमीटर का सर्वे किया गया। पहला चरण प्रात: नौ बजे से शुरु किया गया, जबकि दूसरा पौने दो बजे शुरु हुआ। स्काईटेम मशीन से एकत्र किया गया डाटा वैज्ञानिको द्वारा सेव किया गया। इलाहाबाद और कौशांबी जिलो के बारह सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के सर्वे मे टीम द्वारा अब तक ग्यारह सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का सर्वे किया जा चुका है। हेलिकॉप्टर की मदद से ट्राजियेट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिस्टम से किए गए इस सर्वे मे वैज्ञानिको द्वारा तथ्य जुटाया जा रहा है। 400 मीटर गहराई तक खंगाला गया भूजल : जलधाराओ की खोज के लिए वैज्ञानिको की लगी टीम ने स्काई टेम मशीन के जरिए 200 से 400 मीटर जमीन के नीचे गहराई तक फोटो स्कैनिंग की है। इस स्कैनिंग मे टीम को काफी उपयोगी डाटा मिला है। टीम ने एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि टीम को महत्वपूर्ण डाटा मिला है जो शहर के विकास मे काफी उपयोगी होगा, लेकिन इसकी जांच के बाद स्पष्ट निष्कर्ष मिल सकेगे। यह टीम 28 फरवरी तक अपना शोघ अभियान जारी रखेगी। कौशांबी जिले मे शोध अभियान समापन की ओर बताया जा रहा है। यहां कार्य अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। तो क्या महर्षि वेद व्यास के श्राप से विलुप्त हुई थी 'सरस्वती जलधारा' फोटो - जलधाराओ की खोज पर शुरू हुआ नया कौतूहल - हड़प्पा कालीन संस्कृति मे नदी के सूखने के भी मिले है प्रमाण जागरण संवाददाता,इलाहाबाद : सरस्वती नदी की जलधारा खोजने के लिए इलाहाबाद और कौशांबी मे एक सप्ताह से वैज्ञानिको की टीम जुटी हुई है। मकसद सिर्फ सरस्वती की जलधारा खोजने का ही नही है बल्कि भूजल मे अन्य शामिल जलधाराएं भी है। सरस्वती नदी प्रयाग मे संगम के रुप मे अंर्तप्रवाहमान हो रही है। इस लिए यह और भी कौतूहल बना हुआ है कि आखिर सरस्वती की विलुप्त धारा कहां है? सरस्वती की विलुप्त धाराओ मे भी किवदंतियो की अनेक जनश्रुतियां है। मान्यताओ के अनुसार महाभारत काल मे जब महर्षि वेद व्यास महाभारत की रचना कर रहे थे तो समीप गुजरी सरस्वती की कल- कल बहने की आवाज सुनाई दे रही थी। यह आवाज व्यास जी को एक शोर के रुप मे लग रहा था, बार- बार उनके रचात्मक कार्य मे विघ्न होने पर उन्होंने सरस्वती को विलुप्त होने का श्राप दे दिया था। तब से सरस्वती नदी विलुप्त हो गई थी। वैज्ञानिक कारणो पर यह तथ्य सामने आए कि चार हजार ईसा पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति मे हुए भौगोलिक परिवर्तन के कारण यह नदी धीरे- धीरे सूखने लगी थी। भूकंप आने के बाद भी इन धाराओ के विलुप्त होने की चर्चा सामने आ रही है। बाद मे अठारवी और उन्नीसवीं सदी मे इस नदी के विलुप्त होने पर अनेक शोध शुरू हो गए थे। वर्तमान मे नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट़्यूट हैदराबाद द्वारा इस पर शोध वर्ष 2013 मे शुरु किया गया। यह शोध सात अलग-अलग राज्यो मे शुरू किया जा चुका है। पूर्व मे इलाहाबाद और कौशांबी जनपद के मध्य सरस्वती नदी की जलधाराएं मिलने के संकेत बताए जा रहे थे , हालां कि इसकी आधिकारिक पुष्टि नही की गई है। केवल संभावनाओ पर ही इस बात को बल दिया जा रहा है। इससे पूरे देश मे कौतूहल मचा हुआ है। हैदराबाद इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सुभाष चंद्रा की माने तो कई वर्षो से शोध चल रहा है। इस शोध को हमारी टीम सकारात्मक दिशा की ओर ले जाएगी। केद्रीय भूजल बोर्ड के विभागाध्यक्ष एम एन खान ने बताया कि भूजल का स्कैनिंग डाटा कलेक्शन बहुत तेजी से एकत्र किया जा रहा है।
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